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पुस्तक समीक्षा – एच. आर. डायरीज द्वारा हरमिंदर सिंह



एच. आर. डायरीज

लेखक: हरमिंदर सिंह

प्रारूप: उपन्यास

प्रकाशक: OpenCrayons.com & और Blogadda.com (‘ब्लागर्स टु आँथर्स’ योजना )



लेखक के बारे में:
श्री हरमिंदर का यह पहला उपन्यास है | उत्तर प्रदेश के अमरोहा जिले के गजरौला में रहते हैं | साहित्य से स्नातक है तथा मानव संसाधन की पढ़ाई की है | कुछ साल नौकरी करने के नाद लेखन क्षेत्र में आ गये | उन्हें लेखन के साथ चित्रकारी का शौक है | मौका मिलता है तो कवितायें भी लिखते हैं | उनका ब्लॉग ‘वृद्धग्राम’ वृद्धों को समर्पित पहला हिंदी ब्लॉग है | ब्लॉगअड्डा द्वारा वृद्धग्राम को साल २०१५ का सर्वश्रेष्ठ ब्लॉग का सम्मान मिल चुका है |


पुस्तक प्रारूप : कुछ नौजवान जिन्होंने नयी दुनिया में कदम रखा, उलझ गये दौड़-भाग के पाटो में। जिंदगी की पेचीदगियों को उन्होंने अपनी तरह से हल करने की कोशिश की, अनेक रोचक मोड़ आते गये , वे हँसे, रोये, घबराये लेकिन रुके नहीं। आखिर में उन्होंने पाया की नौकरी करना कोई बच्चों का खेल नहीं! उनकी जिन्दगी का एक हिस्सा उनसे हर बार सवाल करता है की यह दौड़ यूँ ही क्यों चल रही है? हमें क्यों लगता है की हम एक जगह बंधे हुए है? क्या यह हमारी नियति है?

मेरे नजरिये से :

इस किताब का शीर्षक ही थोड़ा बोरियत है, जिससे ऐसा प्रतीत होता है जैसे कि यह किताब मानव संसाधन से सम्बन्धित छिपी जानकारियां लिखी होगी, परन्तु ऐसा नहीं है। इस किताब के माध्यम से लेखक ने सम्बन्धित विभाग की कहानी का ताना बाना बुनने की कोशिश की है। कहानी की शुरुआत काफी धीमी है। शुरुआती अध्याय पढने मे ऐसा प्रतीत होता है जैसे कि  कहानी के मुख्य किरदार के रूप में लेखक ने जो भी सोचा, वह लिख दिया।  जिससे यह कहानी कम, निबंध  ज्यादा लगती है। एक व्यक्ति जो अपनी बारी की प्रतिक्षा कर रहा है, उस दौरान वह क्या क्या सोचता है उसका वर्णन कदापि अनावश्यक एवं असंगत है। कहानी ऐसी ही मनगढंत सोच के साथ आगे बढती हैं।  सोच के साथ, अचानक जब कहानी के अंश आते हैं तो  तालमेल बैठाना मुश्किल हो जाता है।  अलग अलग चरित्र अचानक आती हैं और फिर मुख्य किरदार की सोच और ख्याल भरी दुनिया उन पर हावी हो जाती है।

हालांकि धीरे धीरे कहानी के आगे बढने के साथ थोड़ी लय बनती हैं, किंतु इसमें काफी समय लगता है और एक बिखरी सी कहानी के साथ जुड़े रहना पाठक के लिए मुश्किल कार्य है। कुल मिलाकर मेरे नजरिए से, लेखक पाठकों पर पकड़ बनाने में असमर्थ रहे।

उम्मीद है कि अपनी आगामी कृतियो में कहानी का बेहतरीन ताना बाना बुनकर बहतर प्रस्तुति करेगें।

मुल्यांकन : 1.5/5

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                         Paperback : 210

This review is a part of the biggest Book Review Program for Indian Bloggers. 

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